बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचनासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर
रीति सिद्धान्त
प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हिन्दी रीति परम्परा के सर्वांग निरूपक आचार्यों का योगदान स्पष्ट कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. 'रीति' का आशय स्पष्ट करते हुए गौड़ी रीति की परिभाषा दीजिए।
2. वामन ने काव्यात्मा किसे कहा है? उनके काव्यात्मा सम्बन्धी सूत्र का विवेचन कीजिए।
उत्तर -
रीति की अवधारणा : रीति सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य वामन ने रीति को काव्य की आत्मा माना "रीतिरात्मा काव्यस्य।
रीति के अर्थ के सम्बन्ध में विद्वानों के विभिन्न मत हैं। वामन इसे विशिष्ट पद रचना मानते हैं। विशिष्ट से उनका अर्थ गुण- मुक्तता से है-
'विशिष्टा पद रचना रीतिः।
गुण को वे काव्य का शोभाकारक गुण मानते हैं। वामन के अनुसार वह काव्य शोभाकारक शब्दऔर अर्थ के धर्मों से युक्त पद-रचना है।
डॉ. कृष्णदेव झारी ने आचार्य वामन की परिभाषा को इस प्रकार प्रस्तुत किया है.
"उनके अनुसार पद रचना की विशिष्टता का आधार गुण है विशेषोगुणात्मा। विशेष गुणों के प्रयोग से पद रचना (रीति शैली) में विशिष्टता आती है। गुणों को वामन ने काव्य शोभा का कारक कहा है।"
रीति शब्द की उत्पत्ति : रीति संस्कृत की रीढ़ धातु से बना शब्द रीति गति, चलन, मार्ग, पथ, वीथी, शैली, ढंग, कार्यविधि आदि अर्थों का वाचक है। सरस्वती कंठाभरण के रचयिता भोजदेव ने रीति की व्युत्पत्ति के विषय में इस प्रकार लिखा है-
"वैदर्भादिकृतः पन्था काव्यमार्ग इति स्मृतः।
रीड़ गतावितिघातोः सा व्युत्पत्या रीतिरुच्यते ॥
गल्यर्यक रीड़ धातु से व्युत्पत्ति होने के कारण इसे रीति कहा जाता है। भोजदेव ने रीति के विषय में 'वैदर्भादि काव्यमार्ग' शब्द का प्रयोग इसीलिए किया है कि भामह, दण्डी आदि आचार्यों ने रीति के लिए 'काव्यमार्ग अथवा गिरामार्ग। शब्द का प्रयोग किया है। काव्यशास्त्र के आदि आचार्य भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में रीति के लिए 'कृति-प्रकृति' शब्द का प्रयोग किया है।
रीति का विकास : डॉ. राजवंश सहाय 'हीरा' के अनुसार रीति के विकास की तीन स्थितियाँ हैं।
(1) पहली का सम्बन्ध भौगोलिक दृष्टि से निरूपित काव्यालोचना से ही है।
(2) दूसरी में रीति तत्व का सम्बन्ध दृष्टि से निरूपित काव्यालोचना से ही है।
(3) दूसरी में रीति तत्त्व का सम्बन्ध काव्यगुणों एवं विषय के साथ स्थापित किया गया। (4) कुन्तक के अनुसार इसे कवि का वैयक्तिक गुण होने का अवसर प्राप्त हुआ।
विद्वानों ने इसका अस्तित्व वेदों से स्वीकार किया है। 'ऋग्वेद' में 'रीति' का प्रयोग अनेक स्थानों पर भिन्न-भिन्न अर्थों मंर हुआ है-
(1)
"महीव रीतिः शवसासरत् पृथक्।"
यहाँ इसका प्रयोग धारा के अर्थ में है।
(2)
'तामस्य रीतिः परशोखि
यहाँ (सायण के अनुसार इसका प्रयोग स्वभाव या गति है।)
भरत के नाट्यशास्त्र में रीति शब्द के लिए 'प्रकृति' शब्द का प्रयोग है। उन्होंने भारतवर्ष में प्रचलित चार प्रकृतियाँ- आबंती, दक्षिणाल्या, पाञ्चाली एवं औमागधी का वर्णन किया है जो क्रमशः पश्चिम, दक्षिण, मध्य प्रदेश तथा उड़ीसा मगध में प्रचलित थीं।
बाणभट्ट ने अपने समय में प्रचलित चार दिशाओं की चार शैलियों का उल्लेख किया है। उनके अनुसार उदीच्य (उत्तर भारत ) निवासी श्लेष की, प्रतीच्य लोग अर्थमात्र अथवा अर्थगौरव को, दक्षिणात्य उत्प्रेक्षा को एवं गौढ़ या पूर्व भारत के लोग अक्षराडंबर को अधिक महत्व देते हैं।
भामह ने 'काव्यालंकार' में दो प्रमुख मार्गों वैदर्भी एवं गौड़ीय का उल्लेख किया है उन्होंने दोनों का वर्णन रीति के अर्थ में न करके काव्य-भेद के अन्तर्गत किया है।
दण्डी ने रीति सिद्धान्त का विशद् विवेचन किया। उन्होंने रीति में व्यक्तित्व की सत्ता स्थापित करते हुए प्रत्येक कवि की विशिष्ट रीति मानने का विचार व्यक्त किया। उनके अनुसार जिस प्रकार कवि अनेक हैं उसी प्रकार रीतियों की संख्या भी अनेक हैं।
रुद्रट : डॉ. राजवंश सहाय 'हीरा' के अनुसार उनके रीति-निरूपण की तीन विशेषताएँ हैं। उन्होंने रीति के भौगोलिक महत्व को हटाकर उनका सम्बन्ध रस के साथ स्थापित किया तथा विषय-भेद या वर्ण्य के औचित्य के आधार पर रीतियों का नियोजन किया। उन्होंने 'लटीया' नामक चतुर्थ रीति की उद्भावना कर उनकी संख्या चार कर दी - वैदर्भी, गौड़ीया, पाञ्चाली और लटीया।
अग्नि पुराण : अग्नि पुराण में चार प्रकार की रीतियों का उल्लेख है और समस्त तथा असम्मत पदों के आधार पर ही उनका विभाजन किया गया है।
आनन्दवर्द्धन : इन्होंने रीति को 'संघटना' की संज्ञा प्रदान की है और उसे रस ध्वनि आदि काव्य के आत्मभूत तत्वों का उपकारक स्वीकार किया है। उनके अनुसार रीति और गुण में न तो अभेद होता है और न संघटना या रीति को गुणाश्रित माना जा सकता है। उन्होंने रीति या संघटना के स्वरूप का आधार समास को माना।
राजशेखर : अपने रीति के साथ-ही-साथ प्रवृत्ति एवं वृत्ति का भी निरूपण किया। इन्होंने तीन रीतियाँ मानीं गौड़ीय पंचाली एवं वैदर्भी। ये वचन - विन्यास को पद रचना मानते हैं।
भोज : इन्होंने रीतियों की संख्या में वृद्धि करते हुए 'आवंतिका' और 'मागधी' नामक दो वृत्तियों का और छः रीतियों का उल्लेख किया- वैदर्भी, गौड़ीया, पाञ्चाली, लटीया, आवंतिका एवं मागधी।
मम्मट : आपने उपनागरिका, परुषा एवं कोमल वृत्तिका रीतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि वामनादि ने इन्हें ही वैदर्भी, गौड़ी एवं पाञ्चाली कहा है।
विश्वनाथ : इन्होंने वृत्तियों को अधिक महत्व दिया है और रीति का रस स्वगुण के साथ सम्बन्ध स्थापित किया है।
वामन : वामन ने 'रीति' को काव्य की आत्मा माना। 'रीतिरात्मा काव्यस्य। इन्होंने रीति की व्याख्या भी की - विशिष्ट पद-रचना ही रीति है- 'विशिष्टा पद रचना रीति:' इन्होंने इस 'विशिष्ट' की भी व्याख्या की कि इसका सम्बन्ध गुणों से है- 'विशेषो गुणात्मा।
वामन ने रीति तीन ही प्रकार की मानी वैदर्भी, गौड़ी और पाञ्चाली। उनके अनुसार वैदर्भी अधिकाधिक गुण सम्पन्न रीति है। गौड़ी में वे ओज और कान्ति गुण को स्वीकार करते हैं। तथा पाञ्चाली में माधुर्य और सुकुमारता को मानते हैं।
डॉ. देवीशरण रस्तोगी के अनुसार - 'आचार्य वामन ने गुणों पर विशेष बल दिया। उनके अनुसार गुण काव्य के नित्य धर्म हैं उनकी उपस्थित में काव्य का अस्तित्व असम्भव है। अलंकारों को वामन ने काव्य का अनित्य धर्म माना। उनके अनुसार गुण तो वैशिष्ट्य की रचना कर सकते हैं, पर केवल अलंकार नहीं। वे काव्य के समस्त सौंदर्य को रीति में आश्रित मानते हैं। उनके अनुसार सौंदर्य दोषों के बहिष्कार और अलंकारों के प्रयोग से आता है। इस प्रकार वामन के अनुसार रीति पद-रचना का वह प्रकार है जो दोषों से मुक्त हो एवं गुणों से अनिवार्यतः तथा अलंकारों से साधारणतः सम्पन्न हो।
रीति का स्वरूप
(1) वैदर्भी-
"अपुष्टार्थम् वक्रोक्तिः प्रसन्नामृजु कोमलम्,
भिन्नं गेयनिर्वेदं तु केवलं श्रुति येशलम् ॥"
अर्थात् - अलंकार से रहित, वक्रोक्ति से हीन, अपुष्ट अर्थ वाली वैदर्भी रीति सरल, कोमल, ऋजु पदावली युक्त, गेय एवं कर्ण सुखद होता है।
(2) गौड़ी - भामह के अनुसार गौड़ी इस प्रकार है-
"अलंकार वद ग्राम्यम अर्ध्य याय्यमनाकुलम्
गौड़ीयमपि साधी ये वैदर्भीमपि नान्यथा ॥'
अर्थात् अलंकार युक्त, ग्राम्य दोष से हीन, अर्थ से पुष्ट औचित्य समन्वित एवं शान्त गौड़ी रीति (शैली) में रचना करनी चाहिए, किन्तु वैदर्भी भी व्यर्थ अर्थात् काव्य के लिए अनुपयुक्त नहीं है।
दण्डी ने रीति अथवा गिरा मार्ग की संख्या दो (वैदर्भी एवं गौड़ी) मानने का तीखे शब्दों में खण्डन करके प्रत्येक कवि की भिन्न रीति मानते हुए रीतियों की संख्या असीमित बताई।
आचार्य रुद्रट ने रीतियों की संख्या चार करके उनका रसों से इस प्रकार सम्बन्ध स्थापित किया है-
"वैदर्भी पांचाल्यौ प्रेयसि करुण भयानका भुतयोः
लाटीया गौड़ीये रौद्री यदिथयौ चित्यम् ॥"
अर्थात् वैदर्भी तथा पांचाली रीति का प्रयोग श्रृंगार, करुण, भयानक एवं अद्भुत रसों में करना चाहिए। लाटी तथा गौड़ी रीतियाँ रौद्र रस के अनुकूल हैं।
भोजदेव ने रीतियों की संख्या 105 तक पहुँचा दी। दण्डी ने भी कवि स्वभाव के कारण रीतियों की संख्या अनन्त स्वीकार की।
रीति सम्प्रदाय है या सिद्धान्त : रीति को काव्य की आत्मा बताकर भी वामन किसी सम्प्रदाय के उद्भावक अथवा प्रतिष्ठापक की प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सके। उनका रीतिवाद सम्प्रदाय नहीं बन सका, मात्र सिद्धान्त रह गया। कोई मान्यता सम्प्रदाय तब बनती है, जब उसके अनेक अनुयायी होते हैं एवं वह लम्बे समय तक चलती है।
वामन के पश्चात् किसी भी आचार्य ने काव्य को रीति की आत्मा स्वीकार नहीं किया। वामन ने अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन इतने सशक्त रूप में किया है कि उनकी मान्यता पर्याप्त समय तक चर्चा का विषय रही।
रीति और वक्रोक्ति : कुन्तक रीति का समाहार वक्रोक्ति में करते दिखाई देते हैं।
डॉ. देवीशरण रस्तोगी के अनुसार : वस्तुतः वक्रोक्ति का धरातल रीति की अपेक्षा अधिक व्यापक है। वक्रोक्ति कवि-स्वभाव को मूर्धन्य स्थान प्रदान करती है। जब रीति में काव्य को सर्वस्व मानकर व्यक्तित्व की लगभग उपेक्षा की गई है। इसके अतिरिक्त, वक्रोक्ति में प्रकरण - वक्रता तथा प्रबन्ध-वक्रता की भी व्यवस्था है जबकि रीति में वक्रोक्ति के केवल चार आरम्भिक प्रकार आ पाते हैं- वर्ण विन्यास वक्रता, पदपूर्वार्द्ध वक्रता, पदपरार्द्ध वक्रता और वचनवक्रता। डॉ. नागेन्द्र के अनुसार, "वक्रोक्ति वास्तव में काव्य- कला की समानार्थी है (1) और रीति काव्य-शिल्प की। इस प्रकार वामन की रीति वक्रोक्ति का एक अंग मात्र रह जाती है। इन दोनों सिद्धान्तों के अन्तर का सार यही है।
रीति सिद्धान्त की समीक्षा : यह सिद्धान्त परवर्ती आचार्यों द्वारा सर्वमान्य न हो सका, क्योंकि इसमें रस की महत्ता स्वीकार नहीं की गयी। इसे रीति का एक अंग माना गया, वह भी कम महत्वपूर्ण। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, "रीति सिद्धान्त" ने रीति की आत्मा और रस को एक साधारण अंग मात्र मानकर प्रकृत क्रम का विपर्यय कर दिया और परिणामतः उसका पतन हुआ।
फिर भी रीति-सिद्धान्त का अपना महत्व है। रीति में वचन विन्यासक्रम को महत्व दिया जाता है, जो काव्याभिव्यंजना का एक महनीय तत्व है। इसके समावेश से ही काव्य आकर्षक बन पाता है, अन्यथा इसके अभाव में वह इतिहासादि की भाँति विषय का ही प्रतिपादक़ मात्र बनकर रह जायेगा। यह बात दूसरी है कि रीतिकाव्य में अंग रूप में ही स्वीकार हो सकती है अंगी रूप में नहीं। - डॉ. राजवंश सहाय 'हीरा'
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- प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
- प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
- प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
- प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
- प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
- प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
- प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
- प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
- प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
- प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
- प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
- प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
- प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
- प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
- प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
- प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
- प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
- प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
- प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
- प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
- प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
- प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
- प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
- प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
- प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?